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एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा पाठ का सार और प्रश्न उत्तर






कक्षा 10

हिंदी

कृतिका भाग – 2

अध्याय – 4

शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’

एही ठैयाँ झुलनी  हेरानी हो रामा !

Ehi Thaiyan Jhulni Herani Ho Rama

Summary And Solutions

 

पाठका सार



एक गाँव में दुलारी नाम की नाच-गाने का पेशा करने वाली स्त्री रहती थी। वह दुक्कड़ नामक बाजे पर गीत गाने के लिए प्रसिद्ध थी। उसके कजली गायन का सब लोग सम्मान करते थे। गाने में ही सवाल-जवाब करने में वह बहुत वुफशल थी। एक बार खोजवाँ दल की तरफ से गीतों में सवाल-जवाब करते हुए दुलारी की मुलाकात टुन्न नाम के एक ब्राह्मण लड़के से हुई। बजरडीहा वालों की तरपफ से मधुर कंठ में टुन्नू ने उसके साथ पहली बार सवाल-जवाब किए। दुलारी ने तब अपने प्रति उसके प्रेम को अनुभव किया था। दुलारी के घर आकर भी टुन्नू चुप रहता। कभी प्रेम को प्रकट नहीं करता था। होली के एक दिन पहले टुन्नू दुलारी के घर आया। उसने खादी आश्रम की बुनी साड़ी दुलारी को दी।

दुलारी ने उसे बहुत डाँटा और साड़ी फेंक दी। टुन्न अपमानित होकर रोने लगा। उसके आँसू दुलारी के द्वारा फेंकी साड़ी पर टपकने लगे। उसने अपना प्रेम पहली बार प्रकट किया और कहा कि उसका मन रूप और उम्र की सीमा में नहीं बँधा है। टुन्न के जाने के बाद दुलारी ने साड़ी पर पड़े आँसुओं के धब्बों को चूम लिया। उसने अपनी ढलती उम्र में प्रेम को पहली बार इतने करीब से महसूस किया था। टुन्नू की लाई साड़ी को उसने अपने कपड़ों में सबसे नीचे रख लिया। टुन्नू और अपने प्रेम को आत्मा का प्रेम समझते हुए भी दुलारी चिंतित थी।

टुन्नू के जाने के बाद उसने खाना बनाना शुरू किया ही था कि मोहल्ले का फेंकू नाम का एक परिचित आदमी आ गया, वह दुलारी पर अपना अधिकार समझता था। उसने सुंदर विदेशी साड़ियों का बंडल दुलारी को देना चाहा। उस समय दुलारी को उसका आना बहुत बुरा लगा। नीचे विदेशी कपड़ों को जलाने के लिए वस्त्रों को इकट्ठा करते जुलूस की भारत जननि तेरी जय, तेरी जय हो, की आवाज सुनकर दुलारी ने फेंकू का लाया विदेशी साड़ियों का बंडल नीचे फेंक दिया। दूसरी बार जब फिर दुलारी ने कुछ और साड़ियों को फेंकना चाहा, तो फेंकू ने उसका हाथ पकड़ लिया और खिड़की बंद कर दी।







नीचे से सरकारी गवाह बने पुलिस के एक आदमी अली सगीर ने देख लिया। दुलारी ने फेंकू को झाड़ मार-मार कर घर से निकाल दिया तो जुलूस में शामिल टुन्नू के विरुद्ध अली सगीर ने फेंकू का साथ दिया। जुलूस के टाउन हाल पहुँचने पर पुलिस ने टुन्नू को गालियाँ दी और विरोध करने पर पसली में जूतों की ठोकर मार-मारकर खत्म कर दिया। अंग्रेज सैनिकों ने अस्पताल का बहाना कर मरे टुन्न को वरुणा नदी में फेंक दिया। उधर नीचे आँगन में फेंकू को भगाकर दुलारी पड़ोसिनों से यह कह ही रही थी कि उसका टुन्नू से कोई संबंध नहीं है। इतने में झिंगुर नाम के एक पड़ोसी बच्चे ने टुन्नू के मारे जाने की खबर दी। दुख, क्रोध और आश्चर्य से भरी दुलारी रोने लगी।

उसने टुन्नू की दी साड़ी पहनी और उसके मारे जाने का स्थान झिंगुर से पूछकर वहाँ जाने को तैयार हो गई। उसी समय फेंकू थाने के मुंशी के साथ आया। उसने दुलारी को थाने में होने वाली अमन सभा में गाने के लिए कहा।

अगले दिन शाम को टाउन हाल में अमन सभा ने एक समारोह किया। उसमें जनता का कोई प्रतिनिधि नहीं था। दुलारी को उसमें बुलाया गया। उसे मौसम के अनुसार गीत गाने के लिए मजबूर भी किया गया। अपने और प्रेमी के मारे जाने के स्थान पर गाते हुए दुलारी की आवाश दर्द से भरी थी। एक उदास हँसी के साथ उसके गाने के बोल थे- “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूछू?’ गीत गाते हुए उसने लोगों को इस बात का अहसास करा दिया था कि टुन्नू के मारे जाने में अली सगीर का हाथ है।

टुन्नू के मारे जाने की आँखों देखी खबर लाने और लिखने वाले रिपोर्टर को एक अखबार के प्रधान संवाददाता ने अयोग्य कहा। उसे डाँटा और मुख्य संपादक से उसकी शिकायत भी की। मुख्य संपादक ने भी पूरी खबर सुनकर ‘सच्ची’ होते हुए भी छपने लायक नहीं मानी। वह जानता था कि खबरों की तह तक जाने से अखबार नहीं चलते। उससे विरोध होता है और कार्यालय बंद हो जाते हैं।


कठिन शब्दों के अर्थ –
• झुलनी – नाक के नीचे झूलता हुआ पहना जानेवाला एक आभूषण
• कच्छ – धोती के नीचे पहनी जाने वाली काछ
• दंड – व्यायाम का एक प्रकार
• पुतला – आकृति
• अंगोछा – गमछा
• भुजदंड – बाँह में पहना जाने वाला एक प्रकार का आभूषण
• चणक-चर्वन – चने का चबाया जाना
• करीने से – ढंग-से
• विलोल – चंचल
• खद्दर – खादी
• कज्जल मलिन – काजल से काली
• पाषाण-प्रतिमा – पत्थर की मूर्ति
• कायल – सहमत
• कौतुक – उत्सुकता
• महती – बहुत
• कोर दबाना – लिहाज होना
• कजली दंगल – कजली प्रतियोगिता
• टुक्कड़ – शहनाई के साथ बजाया जाने वाला तबले जैसा एक बाजा
• गौनहारियाँ – गाने को प्रस्तुत करने वाली स्त्रियाँ
• दरगोड़े – पैरों से कुचलना या रौंदना
• लोंट – रुपया
• घेवर – गैरे घी और चीनी के योग से बनी एक मिठाई
• अउर – और
• सारी – सभी
• टाँक – टाँकना
• सोनहली – सुनहरी
• गोट – पटी
• बात-बात में तीर-कमान हो जाना – छोटी-छोटी बातों में लड़ने के लिए तैयार हो जाना
• होड़ – स्पर्धा
• यजमानी – जैसे पुरोहित अपने-अपने क्षेत्र में यजमानी करते हैं
• खेना – चलाना।
• चस्का – आदत
• रंग उतारना – उत्साह कम होना
• मद-विहूल – कामवासना के वशीभूत
• कोढ़ियल – कोढ़ी
• मुहवै – मुँह
• लेब – लेंगे
• बकोट – मुँह का नोच लिया जाना
• अगोरतन – रखवाली करना
• कौड़ी-कौड़ी – एक-एक पैसा
• बटोलन – बटोरना
• जेतना – जितना
• मान – मतलब
• गरिआव – गाली देना
• बझाव – बुझाना, शांत करना
• मनक – गहना
• आबखाँ – बहुत बारीक मलमल का कपड़ा
• यत्न से – सँभालकर
• मनोयोग – एकाग्र मन से
• यौवन का अस्ताचल – जवानी की ढलती अवस्था
• उन्माद – पागलपन
• कृशकाय – दुबला
• पाँड्मुख – गौरवर्णी
• कृत्रिम – बनावटी
• प्रकृतिस्थ – सामान्य
• उड़ती झलक – हलकी झलक
• तमोली – ताँबे के बर्तन बनाने वाला
• मुखबिर – ऐसा अपराधी जो पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार करने के कारण माफ़ कर दिया जाए और सरकारी गवाह बन जाए
• उत्कट – अत्यधिक
• आँखों से ज्वाला निकलना – आँखों से अत्यधिक क्रोध का प्रदर्शन होना
• बटलोही- चूल्हे पर चढ़ाकर खाना पकाने का चपटा और गोल मटके के जैसा बर्तन
• आँख न उठाना – किसी की ओर न देखना
• दिल की आग – मन में जगा अत्यधिक क्रोध या विरोधी
• मेघमाला – लगातार बहते आँसू
• स्तब्ध – आश्चर्य और दुख के कारण जड़ हुई स्थिति
• कर्कशा – तेज आवाज में अधिक विचार किए बिना बोलने वाली स्त्री
• बार-वनिता-सुलभ – स्त्री के जैसा
• बूते की बात – बस की बात
• झखना – झुंझलाना
• झेंप – संकोच। खोमचेवाले – फेरी लगाकर बेचने वाले
• विघटित होना – बँटना
• आमोदित – आनंदित
• उद्धांत – परेशान
• ननदिया – पति की बहन
• देवरा – पति का छोटा भाई
• छहर – छोटी बँद के रूप में अचानक निकल कर फैलना
• आविर्भाव – प्रकट होना

एही ठैयाँ झुलनी  हेरानी हो रामा 

प्रश्न अभ्यास 

 

प्रश्न 1. हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?

उत्तर:- भारत की आज़ादी की लड़ाई में हर धर्म और वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इस कहानी में लेखक ने टुन्नू व दुलारी जैसे पात्रों के माध्यम से उपेक्षित वर्ग के योगदान को उभारने की कोशिश की है। टुन्नू व दुलारी दोनों ही कजली गायक हैं। टुन्नू ने आज़ादी के लिए निकाले गए जलूसों में भाग लेकर व अपने प्राणों की आहूति देकर ये सिद्ध किया कि यह वर्ग मात्र नाचने या गाने के लिए पैदा नहीं हुआ हैअपितु इनके मन में भी आज़ादी प्राप्त करने का जोश है। इसी तरह दुलारी द्वारा रेशमी साड़ियों को जलाने के लिए देना भी एक बहुत बड़ा कदम था तथा इसी तरह जलसे में बतौर गायिका जाना व उसमें नाचना-गाना उसके अप्रत्यक्ष योगदान की ओर इशारा करता है। लेखक ने इस प्रकार समाज के उपेक्षित लोगों के योगदान को स्वतंत्रता के आंदोलन में महत्त्वपूर्ण माना हैं।







प्रश्न 2. कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?

उत्तर:- दुलारी अपने कठोर स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थी परन्तु दुलारी का स्वभाव नारियल की तरह था। वह एक अकेली स्त्री थी। इसलिए स्वयं की रक्षा हेतु वह कठोर आचरण करती थी परन्तु अंदर से वह बहुत नरम दिल की स्त्री थी। टुन्नू, जो उसे प्रेम करता था, उसके लिए उसके हृदय में बहुत खास स्थान था परन्तु वह हमेशा टुन्नू को दुत्कारती रहती थी क्योंकि टुन्नू उससे उम्र में बहुत छोटा था। उसके मन में टुन्नू का एक अलग ही स्थान था उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी गायन-कला का प्रेमी था। फेंकू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय दर्द से फट पड़ा और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली। किसी के लिए ना पसीजने वाला उसका हृदय आज चीत्कार कर रहा था। टुन्नू की मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया | उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली।

प्रश्न 3. कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:- कजली लोकगायन की एक शैली है। इसे भादों की तीज़ पर गाया जाता है। उस समय इनका आयोजन मनोरंजन का साधन हआ करता था। इसके माध्यम से जन-प्रचार भी किया जाता था। इनमें भाग लेने वाले लोग इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेते थे। इन कजली गायकों को बुलवाकर समारोह का आयोजन करवाया जाता था। अपनी प्रतिष्ठा को उनके साथ जोड़ दिया ज तो विभिन्न स्थानों पर अलग अलग रूपों में अनेक समारोह किए जाते हैं;जैसे -राजस्थान में लोक संगीत व पशु मेलों का आयोजन, पंजाब में लोकनृत्य व लोकसंगीत का आयोजन, उत्तर भारत में पहलवानी या कुश्ती का आयोजन, दक्षिण में बैलों के दंगल व हाथीयुद्ध का आयोजन किया जाता है।

प्रश्न 4. दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक – सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:- दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक के दायरे से बाहर है क्योंकि वह गौनहारिन है और गौनहारिन को सामाजिक प्रतिष्ठा का पात्र नहीं माना जाता है उसकी विशिष्ट प्रतिभाएँ इस प्रकार है –
१) प्रबुद्ध गायिका – दुलारी एक प्रभावशाली गायिका है उसकी आवाज़ में मधुरता व लय का सुन्दर संयोजन है। पद्य में सवाल-जवाब करने में उसे कुशलता प्राप्त थी। उसके आगे कोई अच्छा गायक टिक नहीं पाता था।
२) सबला नारी : वह नारी होते हुए पुरुषों के पौरुष को ललकारने की क्षमता रखती है। वह पुरुषों की तरह ही दनादन दंड लगाती और कसरत करती है।
३) देशभक्त-बेशक दुलारी प्रत्यक्ष रूप से स्वतन्त्रता संग्राम में ना कूदी हो पर वह अपने देश के प्रति समर्पित स्त्री थी। तभी उसने फेंकू द्वारा दी, रेशमी साड़ियों के बंडल को,विदेशी वस्त्रों की होली जलाने हेतु जुलूस में आए लोगों को दे दिया।
४) समर्पित प्रेमिका – दुलारी एक समर्पित प्रेमिका थी। वह टुन्नू से मन ही मन प्रेम करती थी परन्तु उसके जीते-जी उसने अपने प्रेम को कभी व्यक्त नहीं किया। उसकी मृत्यु ने उसके हृदय में दबे प्रेम को आँसूओं के रूप में प्रवाहित कर दिया।
५) सहृदया नारी : वह सहृदया भी है। टुन्नू की मृत्यु पर उसकी आँखों से आँसुओं की मेघमाला उमड़ पड़ती है। इस तरह वह भावुक सहृदया नारी है।
६) निडर स्त्री – दुलारी एक निडर स्त्री थी। वह किसी से नहीं डरती थी। अकेली स्त्री होने के कारण उसने स्वयं की रक्षा हेतु अपने को निडर बनाया हुआ था। इसी निडरता से उसने फेकू की दी हुई साड़ी जुलूस में फेंक दी। टुन्नू की मृत्यु के पश्चात उसने खादी पहन कर समारोह में भाग लिया तथा गायन पेश किया।
७) स्वाभिमानी स्त्री – दुलारी एक स्वाभिमानी स्त्री थी। वह अपने सम्मान के लिए समझौता करने के लिए कतई तैयार नहीं थी। इसलिए उसने फे। सरदार द्वारा दिए गए प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।

प्रश्न 5. दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?

उत्तर:- टुन्नू व दुलारी का परिचय भादों में तीज़ के अवसर पर खोजवाँ बाज़ार में हुआ था। जहाँ वह गाने के लिए बुलवाई गई थी। दुक्कड़ पर गानेवालियों में दुलारी का खासा नाम था। उसे पद्य में ही सवाल-जवाब करने की महारत हासिल थी। बड़े-बड़े गायक उसके आगे पानी भरते नज़र आते थे और यही कारण था कि कोई भी उसके सम्मुख नहीं आता था। उसी कजली दंगल में उसकी मुलाकात टुन्नू से हुई थी। उसे भी पद्यात्मक शैली में प्रश्न-उत्तर करने में कुशलता प्राप्त थी। टुन्नू दुलारी की चुनौती स्वीकार करता है। दुलारी मुस्कुराती हुई मुग्ध होकर उसे सुनती है। टुन्नू ने अपनी कला से दुलारी को नतमस्तक कर दिया था।

प्रश्न 6. दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था – “तँ सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखने लोट?…! “दुलारी से इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- दुलारी का टुन्नू को यह कहना उचित था – “तँ सरबउला बोल ज़िन्दगी में कब देखने लोट?…! ” क्योंकि टुन्नू अभी सोलह सत्रह वर्ष का है। उसके पिताजी गरीब पुरोहित थे जो बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला रहे थे। टुन्नू ने अब तक लोट (नोट) देखे नहीं। उसे पता नहीं कि कैसे कौड़ी-कौड़ी जोड़कर लोग गृहस्थी चलाते है। यहाँ दुलारी ने उन लोगों पर आक्षेप किया है जो असल ज़िन्दगी में कुछ करते नहीं मात्र दूसरों की नकल पर ही आश्रित रहते हैं। उसके अनुसार इस ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए ,कोई नहीं जानता। इस ज़िन्दगी में कब नोट या धन देखने को मिल जाए कोई कुछ नहीं जानता। इसलिए हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।







प्रश्न 7. भारत के स्वीधनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?

उत्तर:- दुलारी का योगदान : दुलारी प्रत्यक्ष रूप में आन्दोलन में भाग नहीं ले रही थी फिर भी अप्रत्यक्ष रूप से उसने अपना योगदान दिया था। विदेशी वस्त्रों के बाहिष्कार हेतु चलाए जा रहे आन्दोलन में दुलारी ने अपना योगदान फेंकू द्वारा दिए गए रेशमी साड़ी के बंडल को फेंककर दिया।
टुन्नू का योगदान : टुन्नू ने स्वतन्त्रता संग्राम में एक सिपाही की तरह अपना योगदान दिया। उसने रेशमी कुर्ता व टोपी के स्थान पर खादी के वस्त्र पहनना आरम्भ कर दिया। अंग्रेज विरोधी आन्दोलन में उसने सक्रिय रूप से भाग लिया था और इसी सहभागिता के कारण उसने अपने प्राणों का बलिदान किया।

प्रश्न 8. दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुंचाता है?

उत्तर:- टुन्नू सोलह वर्ष का युवक था और दुलारी ढलते यौवन प्रौढ़ा थी। दुलारी टुन्नू की काव्य प्रतिभा पर मंत्र मुग्ध थी। दुलारी और टुन्नू के हृदय में एक दूसरे के प्रति अगाध प्रेम था और ये प्रेम उनकी कला के माध्यम से ही उनके जीवन में आया था। दुलारी ने टुन्नू के प्रेम निवेदन को प्रत्यक्ष रूप से कभी स्वीकार नहीं किया परन्तु वह मन ही मन उससे बहुत प्रेम करती थी। वह यह भली भांति जानती थी कि टुन्नू का प्रेम शारीरिक ना होकर आत्मीय था और टुन्नू की इसी भावना ने उसके मन में उसके प्रति श्रद्धा भावना भर दी थी। परन्तु फेंकू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय दर्द से फट पड़ा और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली। किसी के लिए ना पसीजने वाला उसका ह्रदय चीत्कार कर उठा उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके गायन में नई जान फूंक दी। यही से उसने देश प्रेम का मार्ग चुना और उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली।

प्रश्न 9.जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकाशं वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?

उत्तर:- आज़ादी के दीवानों की एक टोली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रही थी। अधिकतर लोग फटे-पुराने वस्त्र दे रहे थे। दुलारी के वस्त्र बिलकुल नए थे। दुलारी द्वारा विदेशी वस्त्रों के ढेर में कोरी रेशमी साड़ियों का फेंका जाना यह दर्शाता है कि वह एक सच्ची हिन्दुस्तानी है, जिसके हृदय में देश के प्रति प्रेम व आदरभाव है। देश के आगे उसके लिए साड़ियों का कोई मूल्य नहीं है। उसके हृदय में उन रेशमी साड़ियों का मोह नहीं था। यह उसकी सच्चे देश प्रेम की मानसिकता को दर्शाता है।






प्रश्न 10. “मन पर किसी का बस नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?

उत्तर:- टुन्नू दुलारी से प्रेम करता था। वह दुलारी से उम्र में बहुत ही छोटा था। वह मात्र सत्रह-सोलह साल का लड़का था। दुलारी को उसका प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कुछ नहीं लगता था। इसलिए वह उसका तिरस्कार करती रहती थी। टुन्नू का यह कथन सत्य है। उसका प्यार आत्मिक था। इसलिए उसे दुलारी की आयु या उसके रूप से कुछ लेना देना नहीं था। टुन्नू के आचरण ने दुलारी के हृदय में उसके आसन को और दृढ़ता से स्थापित कर दिया। टुन्नु के प्रति उसके विवेक ने उसके प्रेम को श्रद्धा का स्थान दे दिया। अब उसका स्थान अन्य कोई व्यक्ति नहीं ले सकता था। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली। जब अंग्रेज अफसर द्वारा उसकी निर्दयता पूर्वक हत्या की गई तब ट्रन्नु के प्रति मौन प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए उसने देश प्रेम का मार्ग चुना।

प्रश्न 11. ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! का प्रतीकार्थ समझाइए।

उत्तर:- इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग खो गई है, मैं किससे पूछू ? नाक में पहना जानेवाला लौंग सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है उसने अपने मन रूपी नाक में टुन्नू के नाम का लौंग पहन ली है।। दुलारी की मनोस्थिति देखें तो जिस स्थान पर उसे गाने के लिए आमंत्रित किया गया था, उसी स्थान पर टुन्नू की मृत्यु हुई थी तो उसका प्रतीकार्थ होगा – इसी स्थान पर मेरा प्रियतम मुझसे बिछड़ गया है। अब मैं किससे उसके बारे में पूछू कि मेरा प्रियतम मुझे कहाँ मिलेगा? अर्थात् अब उसका प्रियतम उससे बिछड़ गया है, उसे पाना अब उसके बस में नहीं है।




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